मिस्र सभ्यता नील नदी की देन।
मिस्र की सभ्यता में नील नदी का बहुत महत्व है. अगर नील नदी ना होती तो मिस्र में सभ्यता का विकास भी नहीं हो पाता. प्राचीन काल में नील नदी को हापी कहा जाता था। यह मध्य अफ्रीका की विक्टोरिया झील के पास से निकलती है और लगभग 700 मील का रास्ता तय करके तथा प्रति वर्ष बाढ़ का पानी और नई मिट्टी लाती हुई भूमध्य सागर में जा मिलती है। यह नदी बंजर चट्टानों में से सकरी उपजाऊ घाटी बनाती है, अपने साथ उर्वरा मिट्टी लाती है, जो इसके किनारों को उपजाऊ बना देती है और अंत में अपनी प्रति वर्ष बाढ़ से सिंचाई में निपुण साधन जुटाकर लोगों का जीवन सफल और सुखी बना देती है। मिस्र की प्राचीन सभ्यता इसी नील नदी की घाटी में पनपी थी। प्राचीन काल में नील नदी के उद्भव के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं थी। कुछ अनुमानों के आधार पर कहा जाता है कि नील नदी उस पर्वत से निकलती है जो बादलों और घने कोहरे से ढका रहता है। अॉलमी ने पर्वत को चांद का पर्वत कहां है। स्टेनले ने इस पर्वत को रूबेनजोरी कहा है। जिसका अर्थ है "वर्षा करने वाला इंद्र पर्वत". इस क्षेत्र को आजकल इथियोपिया कहा जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध तक इसे अबीसीनया और प्राचीन काल में नूबिया कहा जाता था। मिस्र की भूमि अधिक उपजाऊ है इसलिए प्राचीन काल से ही एक कृषि प्रधान देश रहा है।
पिरामिड काल में यहां गेहूं,चावल, रुई,गन्ना पेपीरस विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियां उगाई जाती थी। डेविस ने लिखा है नील नदी समस्त युगों में मिस्र वासियों के जीवन तथा उसकी संपन्नता का साधन रही है । यही कारण है कि मिस्र जैसा रेगिस्तान प्रदेश इस नदी के कारण हमेशा हरा-भरा नजर आता है। प्राचीन मिस्र के लोग अपने देश को काला देश कहा करते थे, क्योंकि नील नदी की उपजाऊ मिट्टी काली होती थी। नील नदी की दो सहायक नदियां श्वेत तथा नीली भी बहती थी। यह नदियां मिश्र की भूमि को संपूर्ण वर्ष जल प्रदान करती थी। नील ने ही मिश्र को आर्थिक विकास, समृद्धि तथा विश्व में गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया। इसलिए इतिहास के जन्मदाता यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने मिस्र को नील नदी की देन कहा है ।मिस्र की भूमि हमेशा हरी भरी रहती थी। यहां के पशुओं को प्रचुर मात्रा में चारा उपलब्ध हो जाता था। नील नदी के मार्ग से मिस्र के लोग विदेशी व्यापार भी करते थे। नील नदी की घाटी से विभिन्न प्रकार की धातु और बहुमूल्य पत्थर सरलता से उपलब्ध हो जाते थे जिसके फलस्वरूप मिश्र का आर्थिक विकास अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। क्योंकि मिश्र नदी में बहुत बाढ़ आती थी, इसलिए नील वासियों ने बाढ़ को रोकने के लिए और अपने भूमि को पूरे वर्ष जल प्रदान करने के लिए जल का संग्रहण करना आरंभ कर दिया। इसके लिए उन्होंने बांधों और नहरों का निर्माण कराया। उन्होंने नील नदी के तट पर कई नगरों की स्थापना भी की। विदेशों के साथ व्यापारिक संबंध हो जाने के कारण यहां गणित, विज्ञान, ज्योतिष तथा कला का बहुत विकास हुआ। एक विद्वान का विचार है कि यदि मिस्र में नील नदी नहीं होती तो वहां के लोगों का जीवन दूभर हो जाता क्योंकि गर्मियों के मौसम में यहां इतना तापमान बढ़ जाता है कि नदी, नाले, तालाब इत्यादि भी सूख जाते हैं। जल के अभाव में पेड़ पौधे तो क्या मनुष्य व जानवर भी सूखने लगते हैं। तपती गर्मी के समय नील नदी की धारा भी सूख कर पतली हो जाती है तथा खेत खलिहान भी सूख जाते हैं। जब तक की गहरी खुदाई की सहायता से पानी ऊपर ना लाया जाए। कृषि करना असंभव होता है। परंतु अगस्त से अक्टूबर तक यहां खूब वर्षा होती है। नदी, नाले और तालाब पानी में लबालब डूब जाते हैं, जिससे दोबारा मनुष्यों में हर्षोल्लास लौट आता है और पशु तथा पेड़ पौधों में जान आ जाती है।
पिरामिड काल में यहां गेहूं,चावल, रुई,गन्ना पेपीरस विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियां उगाई जाती थी। डेविस ने लिखा है नील नदी समस्त युगों में मिस्र वासियों के जीवन तथा उसकी संपन्नता का साधन रही है । यही कारण है कि मिस्र जैसा रेगिस्तान प्रदेश इस नदी के कारण हमेशा हरा-भरा नजर आता है। प्राचीन मिस्र के लोग अपने देश को काला देश कहा करते थे, क्योंकि नील नदी की उपजाऊ मिट्टी काली होती थी। नील नदी की दो सहायक नदियां श्वेत तथा नीली भी बहती थी। यह नदियां मिश्र की भूमि को संपूर्ण वर्ष जल प्रदान करती थी। नील ने ही मिश्र को आर्थिक विकास, समृद्धि तथा विश्व में गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया। इसलिए इतिहास के जन्मदाता यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने मिस्र को नील नदी की देन कहा है ।मिस्र की भूमि हमेशा हरी भरी रहती थी। यहां के पशुओं को प्रचुर मात्रा में चारा उपलब्ध हो जाता था। नील नदी के मार्ग से मिस्र के लोग विदेशी व्यापार भी करते थे। नील नदी की घाटी से विभिन्न प्रकार की धातु और बहुमूल्य पत्थर सरलता से उपलब्ध हो जाते थे जिसके फलस्वरूप मिश्र का आर्थिक विकास अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। क्योंकि मिश्र नदी में बहुत बाढ़ आती थी, इसलिए नील वासियों ने बाढ़ को रोकने के लिए और अपने भूमि को पूरे वर्ष जल प्रदान करने के लिए जल का संग्रहण करना आरंभ कर दिया। इसके लिए उन्होंने बांधों और नहरों का निर्माण कराया। उन्होंने नील नदी के तट पर कई नगरों की स्थापना भी की। विदेशों के साथ व्यापारिक संबंध हो जाने के कारण यहां गणित, विज्ञान, ज्योतिष तथा कला का बहुत विकास हुआ। एक विद्वान का विचार है कि यदि मिस्र में नील नदी नहीं होती तो वहां के लोगों का जीवन दूभर हो जाता क्योंकि गर्मियों के मौसम में यहां इतना तापमान बढ़ जाता है कि नदी, नाले, तालाब इत्यादि भी सूख जाते हैं। जल के अभाव में पेड़ पौधे तो क्या मनुष्य व जानवर भी सूखने लगते हैं। तपती गर्मी के समय नील नदी की धारा भी सूख कर पतली हो जाती है तथा खेत खलिहान भी सूख जाते हैं। जब तक की गहरी खुदाई की सहायता से पानी ऊपर ना लाया जाए। कृषि करना असंभव होता है। परंतु अगस्त से अक्टूबर तक यहां खूब वर्षा होती है। नदी, नाले और तालाब पानी में लबालब डूब जाते हैं, जिससे दोबारा मनुष्यों में हर्षोल्लास लौट आता है और पशु तथा पेड़ पौधों में जान आ जाती है।
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