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25 नवम्बर का इतिहास

♓🅰♉🚩🅾♏ *भारतीय एवं विश्व इतिहास में 25 नवंबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ।* ☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆ 1667 - रूस के उत्तरी कॉकसस क्षेत्र के सेमाखा में ...

Monday, 23 July 2018

स्किनर के अनुकूलन सिद्धांत की विवेचना करें।

स्किनर के अनुकूलन सिद्धांत की विवेचना करें।

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उत्तर-: स्किनर ने 1938 में सीखने के एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसको प्रवर्तन अनुकूलन सिद्धांत अथवा साधनात्मक अनुबंधन सिद्धांत कहते है। यह सिद्धांत पैवलव, 1904 का क्लासिकी सिद्धांत से भिन्न है। दोनों की अवधारणाओं में अंतर है।
• स्किनर के अनुसार, किसी समस्या का समाधान सीखते समय प्राणी की प्रतिक्रिया प्रबलन प्राप्त करन में साधनात्मक होती है। जबकि पैवलाव के अनुसार प्राणी की प्रतिक्रया प्रबलन प्राप्त करन में सधनात्मक नहीं होती है।
• स्किनर के अनुसार प्राणी की प्रतिक्रिया संपूर्ण - शिक्षण परिस्थिति में फैली होती है जबकि पैवलव के अनुसार ऐसा नहीं होता है ।
• स्किनर के अनुसार शिक्षण परिस्थिति में प्राणी को आंशिक प्रबलन मिलता है जबकि पर पैवलाव के अनुसार पूर्ण प्रबलन मिलता है।
स्किनर के अनुसार उत्तेजना सामान्यीकरण में प्राणी पहली शिक्षण परिस्थिति अनुसार दूसरी शिक्षण पद्धतियों में पहले सीखी गई प्रतिक्रिया को दोहराता है , जबकि पैवलाव के अनुसार प्राणी उस सीखी गई प्रतिक्रिया को उस तटस्थ उत्तेजना के समान अन्य उत्तेजनायों की उपस्थिति में दोहराता है।

थाॅर्नडाइक के प्रयत्न तथा भूल सिद्धांत की विवेचना करें। यहाँ पढ़े।



यहाँ पढ़े बुद्धि से क्या तात्पर्य है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।


स्किनर ने अपनी अवधारणाओं को सत्यापित करने के लिए बिजली चूहे पर प्रयोग किया। भूखे चूहे को स्किनर बॉक्स में डाल दिया गया । जिसमें कई लीवर लगे थे, जिनमें से एक लीवर ऐसा था। जिसको दबाने पर उसे भोजन मिलता था । जब वह सही लिवर को दबाता था तो उसे भोजन मिलता था और जब गलत लीवर को दबाता था तो उसे भोजन नहीं मिलता था । देखा गया कि कई प्रयासों के बाद उसने सही लीवर दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख लिया। इसी प्रकार इसकी स्किनर ने कबूतर पर भी प्रयोग किया और अपनी अवधारणाओं को प्रमाणित किया।
इन प्रयोगों के आलोक में स्किनर ने परिवर्तन अनुकूलन की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया।

1. प्रवर्तन अनुक्रिया-: इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षण परिस्थिति में प्राणी की प्रतिक्रिया या अनुक्रिया संपूर्ण शिक्षण परिस्थिति में फैली हुई होती है ।
2. साधनात्मक अनुक्रिया-: स्किनर के अनुसार प्राणी का व्यवहार प्रबलन प्राप्त करने के लिए साधनात्मक होता है । जब वह सही प्रतिक्रिया करता है तो उसे प्रबलन मिलता है और जब गलत प्रतिक्रिया करता है तो प्रबलन प्राप्त नहीं होता है ।
3. आंशिक प्रबलन-: इस सिद्धांत के अनुसार प्राणी को प्रत्येक प्रयास में प्रबलन नहीं मिलता है। जिस प्रयास में उसका व्यवहार या प्रतिक्रिया सही होता है, उसमें प्रबलन मिलता है और जिस प्रयास में उसका व्यवहार या प्रतिक्रिया गलत होती है ,उसमें पर प्रबलन नहीं मिलता है।
4. प्रबलन -: इस सिद्धांत के अनुसार सीखने के लिए प्रबलन आवश्यक है। इसी प्रकार इस सिद्धांत की गणना प्रबलन वादी सिद्धांतों में की जाती है ।
5. प्रबलन अनुसूची-: प्रबलन अनुसूची का अर्थ यह है कि सीखते समय प्राणी को किस रूप में प्रबलन दिया जाय। एक अनुसूची वह है जिसमें प्राणी को प्रत्येक प्रतिक्रिया के बाद प्रबलन दिया जाता है । इसे पुर्न प्रबलन या सतत प्रबलन कहते हैं। दूसरी अनुसूची वह है जिसमें प्राणी को कुछ प्रतिक्रिया में प्रबलन दिया जाता है तथा कुछ प्रतिक्रियाओं में नहीं दिया जाता है, इसे आंशिक प्रबलन य असतत प्रबलन कहते हैं । स्कीनर ने इसी प्रबलन अनुसूची का उपयोग किया।
6. प्रणोदन-: इस सिद्धांत के अनुसार किसी विषय को सीखने अथवा किसी समस्या के समाधान हेतु प्राणी में प्रणोदन का होना आवश्यक है। जैसे- भूख प्रणोदन की उपस्थिति में ही चूहे ने अपनी समस्या का समाधान करना सिखा।
7. संगठित रूप देना -: स्किनर के सिद्धांत कि यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है । इसका अर्थ यह है कि शुरू में सीखते समय प्राणी का व्यवहार या प्रतिक्रिया असंगठित रहती है। जैसे--- स्कीनर बॉक्स में भूखे चूहे की प्रतिक्रिया असंगठित होती थीं, किंतु प्रबलन के कारण वह क्रमशः संगठित रूप धारण कर दी गई और अंत में उसने केवल एक सही लिवर को दबाकर पर प्रबलन प्राप्त करना सीख लिया।
कोहलर के सूझ सिद्धांत की विवेचना करें। यहाँ पढ़े।

शैक्षिक आशय एवं मूल्यांकन-: स्किनर के सिद्धांत की समीक्षा करने से इसके कई शैक्षिक आशयों का उल्लेख मिलता है । इसके शैक्षिक महत्व को निम्नलिखित रुप में देखा जा सकता है ---
1. यह सिद्धांत सीखने में प्रबलन को आवश्यकता है अतः इसका आशय शिक्षा के क्षेत्र में यह है कि बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिए उन्हें उपयुक्त प्रबलन दिया जाए ।
2. इस सिद्धांत के अनुसार सकारात्मक प्रबलन अर्थात पुरस्कार देने पर वह प्रतिक्रिया प्रबलित होती है और प्राणियों से सीखता है और नकारात्मक प्रबलन देने पर वह प्रतिक्रिया कमजोर होती है और प्राणी उसे नहीं सीखता है। अतः इसका शैक्षिक आशय कहा है कि बालकों को उनके वांछित व्यवहारों के लिए पुरस्कार तथा अवांछित व्यवहार करने पर दंड देना चाहिए।
3. इस सिद्धांत का एक सच यह भी है कि कक्षा में कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि शुरू में छात्रों को प्रत्येक सही प्रतिक्रिया पर धनात्मक प्रबलन मिले और बाद में कभी कभी सही प्रतिक्रिया पर यह प्रबलन नहीं मिले। दूसरे शब्दों में, आरम्भ में सतत प्रबलन की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा इसके बाद असतत प्रबलन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
4. इस सिद्धांत का एक आशय यह भी है कि शिक्षक बच्चों को नियंत्रित किन्तु स्वाभाविक रूप से सीखने का सीखने का अवसर दे। इनसे उनमें सीखने की योग्यता स्वाभाविक रूप से विकसित होगी।
स्किनर के सिद्धांत का एक शैक्षिक महत्त्व यह भी है कि इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि प्राणी को संपूर्ण शिक्षण परिस्थिति में प्रवर्तन अनुक्रिया का अवसर दिया जाना चाहिए । इसका अर्थ यह है कि शिक्षकों को चाहिए कि वे परीक्षार्थियों को प्रवर्तन तरीके से व्यवहार करने का मौका दें ताकि उनकी शिक्षा समग्र रूप से हो सके।

सीमाएँ-: स्किनर के सिद्धांत के कई शैक्षिक महत्त्व का उल्लेख किया जा चुका है।लेकिन, इसमें कुछ त्रुटियाँ भी हैं------
1. स्किनर ने अपने सिद्धांत में दंड के महत्त्व को घटा दिया है लेकिन आज भी अधिकांश मनोवैमानते है कि बच्चों के अवांछित व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए दण्ड एक आवश्यक उपकरण है।
2. इस सिद्धांत की एक आवश्यक त्रुटि यह भी है कि इसमें उत्तेजना-प्रतिक्रिया सम्बंध पर बाह्य रूप से बल दिया गया है। लेकिन बालकों की समुचित शिक्षा के लिए यह आवश्यक है उनकी आंतरिक संरचना को भी समझने का प्रयास करें।
3. शिक्षा के दृष्टिकोण से इस सिद्धांत की यह अवधारणा भी पूर्णतः सही नहीं है कि केवल अभ्यास करने से ही उत्तेजन- अभिक्रिया बंधन का निर्माण होता है। वास्तव में किसी विषय को सीखने के लिए सूझ भी आवश्यक है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षण की अन्य सिद्धांतो की तरह स्किनर का सिद्धांत भी बालकों की शिक्षा के लिए केवल आंशिक रूप में ही सफल है।



Sunday, 22 July 2018

बुद्धि से क्या तात्पर्य है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।

प्रश्न-: बुद्धि से क्या तात्पर्य है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।

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उत्तर-: बुद्धि का शाब्दिक अर्थ ज्ञान शक्ति तथा मेधा है। यह एक अनुमानित ज्ञान शक्ति है। क्योंकि इसका ज्ञान प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है बल्कि क्रियाओं या व्यवहारों के माध्यम से हो पाता है। जब कोई बालक अपने साथियों की अपेक्षा कम ही समय में याद कर लेता है तो वह अन्य बालकों से अधिक बुद्धिमान समझा जाता है। जो बालक अपने पाठ्य को देर से याद कर पाता है अथवा शिक्षक के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाता है। वह निर्बल बुद्धि का समझा जाता है। इसी तरह जो व्यक्ति अपने समस्याओं का समाधान शीघ्र ही खोज लेता है तथा जटिल से जटिल वातावरण में भी स्वयं को समायोजित कर लेता है, उसे मेधावी या बुद्धिमान कहा जाता है। दैनिक जीवन के ऐसे परीक्षणों से ज्ञात होता है कि बुद्धि एक ऐसी मानसिक क्षमता है , जिसका अभिव्यक्ति जीवन के विभिन्न पहलुओं के संदर्भ में होती रहती है। इस क्षमता की परिभाषा देना वस्तुतः बड़ा कठिन है।

{काॅलविन तथा पिन्टनर के अनुसार -: बुद्धि वह क्षमता है जो उसे जीवन की नई परिस्थितियों में समुचित रूप से समायोजित होंने में सहायता करता है।}
कोहलर के सूझ सिद्धांत की विवेचना करें।

बुद्धि अथवा बौद्धिक व्यवहार की विशेषताएं(बुद्धिमान लोंगों की पहचान) -:
बुद्धि की विशेषताओं की व्याख्या करने के पूर्व इस बात की चर्चा कर देना आवश्यक जान पड़ता है कि बुद्धि एक अनुमानित चीज है। जिस तरह बिजली का अनुमान हम उसके परिणाम से लगाते है, उसी तरह बुद्धि का अनुमान व्यक्ति के कार्य या व्यवहार से लगाया जाता है। व्यवहार के आधार पर ही हम कहते हैं कि अमुक आदमी अधिक बुद्धिमान है तथा अमुक आदमी कम बुद्धिमान है। अतः बुद्धि की विशेषताओं का तात्पर्य बुद्धियुक्त व्यवहार से है। अतः बुद्धि या बुद्धियुक्त व्यवहार की निम्नलिखित विशेषताएं हैं ----
1. सावधानी-: बुद्धि की एक मुख्य विशेषता सावधानी है। जो व्यक्ति बुद्धिमान होता है,वह अपने वातावरण के प्रति सदैव सावधान रहता है, सदैव जागरूक रहता है।इसलिए वातावरण में किसी प्रकार के परिवर्तन होने पर वह अविलम्ब समायोजन स्थापित कर लेता है। लेकिन, मूर्ख अथवा कम बुद्धिमान व्यक्ति में सावधानी का अभाव रहता है। इसलिए वह अपने वातावरण से समायोजित नहीं हो पाता है या देर से होता है।
2. पर्याप्त धारण शक्ति-: बुद्धिमान व्यक्ति की एक ओर विशेषता यह भी है कि उसमें धारण शक्ति पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है। वह अपने पूर्वअनुभवों को अधिक दिन तक याद रखता है। लेकिन मुर्ख या निर्बल लोंगों यह विशेषता नहीं पायी जाती है। इस संबंध में जो प्रयोगात्मक अध्ययन हुए है उनसे पता चलता है कि बुद्धि तथा धारणा में धनात्मक सहसंबंध है।
3. विचारों का समीकरण-: बुद्धिमान व्यक्ति अपने विचारों का सहज ही समीकरण कर लेते है।वे न केवल अपने पूर्वानुभवों को याद रखते है बल्कि उनका समीकरण करके समस्याओं की आसानी से हल भी कर लेते है। लेकिन , मूर्खों या निर्बल बुद्धि के व्यक्तियों में इस क्षमता की कमी होती है।
4. शीघ्र समायोजन-: बुद्धिमान व्यक्तियों में अभियोजन या समायोजन की क्षमता अधिक होती है। अतः वे जटिल -से -जटिल वातावरण में भी स्वयं को बहुत जल्द समायोजित कर लेते है। लेकिन,मूर्खों में इस क्षमता की कमी होती है। काॅलविन तथा पिन्टनर ने अभियोजन पर जोर देते हुए यहां तक कह दिया की अभियोजन की क्षमता ही बुद्धि है। वास्तव में अभियोजन पर बुद्धि की अन्य विशेषताओं जैसे-: प्रबल धारण , समीकरण, इत्यादि का गहरा प्रभाव पड़ता है।
5. विचारों का परिचालन-: बुद्धिमान व्यक्ति का एक लक्षण यह है कि उसमें चिन्तन की क्षमता अधिक होती है। अमूर्त्त विषयों के संबंध में वह आसानी से चिंतन कर सकता है और सही रूप में उपस्थित कर सकता है। लेकिन, निर्बल बुद्धि के व्यक्तियों में इस क्षमता का अभाव देखा जात है। बुद्धि के इस लक्षण पर बल देते हुए परम तो यहाँ तक कह दिया की अमूर्त चिंतन की क्षमता ही बुद्धि है।

थाॅर्नडाइक के भूल तथा प्रयत्न संबंधित सिद्धांत की विवेचना करें।

6. आत्म मूल्यांकन -: बुद्धिमान व्यक्ति अपनी योग्यताओं की क्षमताओं का मूल्यांकन करने की क्षमता रखता है। वह अपनी सीमाओं को समझता है। अतएव किसी व्यवहार को करने के पूर्व उसके परिणाम को अच्छी तरह समझ लेता है। इसलिए वह अपने उद्देश्य की प्राप्त करने में सफल होता है। किंतु, मूर्ख व्यक्ति में इस क्षमता का अभाव देखा जाता है। इसलिए वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति में असफल हो जाता है।
7. आत्म विश्वास-: बुद्धिमान व्यक्ति में आत्म विश्वास का भी होना आवश्यक है। किसी काम को वह आत्म विश्वास के साथ आरंभ करता है। इससे उसे आत्मबल मिलता है तथा कार्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है। इसके विपरीत, मूर्ख या निर्बल बुद्धि के लोगों में इसका अभाव देखा जाता है। उन्हें अपनी योग्यता पर विश्वास नहीं होता है। किसी कार्य को आरंभ करत समय वे डरते रहत ऐसे कि उन्हे सफलता मिलेगी अथवा नहीं। इसका परिणाम यह होता है कि वे प्रायः असफल ही रहते है क्योंकि उनकी क्रिया का कोई ठोस आधार नहीँ होता है।
8. प्रबल प्रेरणा-: बुद्धिमान व्यक्ति अपने कार्य के प्रति पूरी तरह से प्रेरित रहते है।इसका कारण यह है कि उन्हे अपनी सफलता का पूरा विश्वास रहते है।लेकिन,मूर्खों में प्रबल प्रेरणा का अभाव रहता है।
9. सूझ द्वारा सीखना-: बुद्धि की एक विशेषता सूझ भी है। मूर्खों की अपेक्षा बुद्धिमान लोगों में अधिक सूझ होती है। वे अपनी समस्या को सूझ के द्वारा अधिक हल करते है। किन्तु, मूर्ख या निर्बल बुद्धि के लोग सूझ की अपेक्षा भूल या प्रयत्न द्वारा अधिक सीखते हैं।
10. आविष्कार एवं निर्देशन -: आविष्कार तथा निर्देशन भी बुद्धि आवश्यक गुण हैं। बिने नए बुद्धि के इस लक्षण पर जोर देते हुए कि बुद्धिमान व्यक्ति वहीं है जिसमें आविष्कार तथा निर्देशन की क्षमता वर्तमान हो। हमारे दैनिक जीवन के निरीक्षण भी साक्षी है कि बुद्धिमान व्यक्तियों में आविष्कार तथा निर्देशन की क्षमता मूर्खों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि बुद्धि या बुद्धिमानों की पहचान के कई लक्षण है।


Saturday, 21 July 2018

कोहलर के सूझ सिद्धांत की विवेचना करें।

कोहलर के सूझ सिद्धांत की विवेचना करें।
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उत्तर-: सूझ सिद्धांत का प्रतिपादन कोहलर तथा कोफ्फाक ने किया।ये दोनों गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंनें शिक्षण में सूझ पर जोर दिया और बताया की प्राणी अपनी समस्या को समझबूझ के द्वारा हल करना सीखता है । समस्या के विभिन्न पहलुओं तथा उसके समाधान के सही मार्ग का बोध हो जाना ही सुझ है। उन्होंने अपने विचार को प्रमाणित करने के लिए कई खोज किए। उनके अधिकांश प्रयोग बंदरों तथा वनमानुषों पर हुआ। नीचे दो प्रयोगोंका वर्णन किया जा रहा है।

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थार्नडाइक का भूल संबंधित सिद्धांत की विवेचना करें।



छड़ी समस्या प्रयोग-: कोहली ने सुलतान नामक एक तीव्र बुद्धि के वनमानुष को पिंजरे में बंद कर दिया। वनमानुष भूखा था । वहीं ठीक पिंजरे के बाहर इतनी दूरी पर केला रख दिया गया था जो उसकी पहुँच से तब तक बाहर था जब तक कोई युक्ति लगा कर उसे हासिल करने का प्रयास न किया जाया। पहले तो वनमानुष ने उसे पाने के बहुत जद्दोजहद किया लेकिन सफलता ना मिली। शांत थककर बैठ गया। इस बीच उसे पास रखे दो छड़ी दिखी जिससे से वह खेलने लगा । इस छडी की खासियत यह थी कि जरूरत पड़ने पर उसे जोड़कर एक करके लम्बा किया जा सकता था। पहले तो उसने एक छड़ी को आगे करके केले को प्राप्त करना चाहा पर सफल न हुआ। खेल- खेल में वनमानुष ने छड़ी को सहसा जोड़कर लम्बा कर लिया । अचानक से उसका विचार केले को प्राप्त करने की ओर गया और उसने छड़ी को लम्बा करके केले को प्राप्त करके अपनी भूख को शांत किया । दूसरे ,तीसरे और चौथे दिन भी सुलतान के साथ इसी प्रका रखी क्रिया दुहराई गयी पर इस बार सुलतान ने बहुत कम समय में ही केले को प्राप्त करना सीख गया।

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बाॅक्स समस्या प्रयोग-: इस प्रयोग में कोहली ने भूखे वनमानुष को एक कमरे में बंद कर दिया और छत पे केले के गुच्छे को इस शर्त के साथ लटका दिया की उछल-कूद के सहज क्रिया के बाद उस केले के गुच्छे को प्राप्त न किया जा सके। भूख से बेचैन वनमानुष कुछ देर के उछल-कूद के बाद चुपचाप बैठ गया और अचानक से उसकी नजर कमरे के अंदर पडे बक्से के ऊपर गयी। उसने केले के दूरी को देखा। इस दौरान उसने परिस्थिति को समझते हुआ बक्स के ऊपर बाक्स को रखा और केले को प्राप्त कर लिया। दूसरे , तीसरे दिन इस प्रकार की समस्या जब उस वनमानुष के साथ उत्पन्न की गयी तो उसने फौरन केले को प्राप्त करना सीख लिया।



सूझ द्वारा सीखने की विशेषताएं-; कोहलर के उपर्युक्त दोनों प्रयोगमों के विश्लेषण के आधार पर सूझ द्वारा सीखने की निम्नांकित विशेषताएं स्पष्ट होती है-:
1. प्रणोदन-: सीखने के लिए प्रणोदन आवश्यक है। यदि वनमानुष में भूख की प्रेरणा नहीं होती तो वह छड़ियों को जोड़कर या बक्से पर बक्सा रख कर केले को प्राप्त करना नहीं सीख पाता है।
2. समस्या की छानबीन-: प्राणी के सामने जब कोई समस्या उपस्थित होती है तो वह उसको समझने का भरसक प्रयास करता है। समस्यात्मक परिस्थिति के विभिन्न अंगों के समझने की कोशिश करता है।
3. हिचकिचाहट-: जब प्राणी अपनी समस्या को नहीं समझ पाता है तो वह किसी तरह की प्रतिक्रिया करने में हिचकिचाहट का अनुभव करने लगता है। फलतः वह शिथिलता की अवस्था में चला जाता है। जैसे - कोहलर का वनमानुष जब उछल कूद कर छत से लटके केले को न पा सका तो वह चुपचाप बैठ गया।
4. अचानक सफलता-: सूझ के द्वारा सीखने की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि प्राणी को अचानक सफलता मिल जाती है।वास्तव में प्राणी शिथिलता की अवस्था में भी मानसिक रूप से सक्रिय रहता है। वह अपनी समस्यात्मक परिस्थिति को समझने की कोशिश करता है। ज्यों ही परिस्थिति उसकी समझ में जाती है अर्थात् सूझ मिल जाती है, वह सहसा अपनी समस्या को हल कर लेता है।
5. सहज स्थानांतरण-: यर्क्स के अनुसार सूझ द्दारा सीखने की एक मुख्य विशेषता यह बताई गयी है कि इसमें स्थानान्तरण सहज तथा प्रभावपूर्ण होता है। एक परिस्थिति में प्राणी जब एक विषय को सीख लेता है तो बड़ी आसानी से उसका उपयोग दूसरी परिस्थिति में करता है।


सूझ सिद्धांत का शैक्षिक आशय एवं मूल्यांकन-:

शैक्षिक दृष्टिकोण से यह सिद्धांत बहुत ही महत्वपूर्ण है। कारण यह है कि बालकों के शिक्षण की व्याख्या इसके आधार पर एक बड़ी हद तक हो जाती है। विशेष रूप से प्रतिभाशाली या तेज बुद्धि के बालक प्रायः सूझ के द्वारा ही सीखते है। अंकगणित या रेखागणित जैस विषयों के शिक्षण की व्याख्या इस सिद्धांत के आधार पर बहुत अंशों में हो जाती है। यहां तक की विभिन्न प्रकार के क्रियात्मक शिक्षण में भी सूझ की आवश्यकता होती है। इस सिद्धांत के आधार पर जो कुछ सीखा जाता है वह अधिक टिकाऊ होता है और उसका स्थानान्तरण भी सहज एवं प्रभावी होता है। यही कारण है कि आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिक ने बालकों के शिक्षण में इस सिद्धांत के उपयोग पर अधिक जोर दिया है। तीव्र बुद्धि के ब

Friday, 20 July 2018

थार्नडाइक के प्रयत्न तथा भूल सिद्धांत की विवेचना करें।

थार्नडाइक के प्रयत्न तथा भूल सिद्धांत की विवेचना करें।


उत्तर-: प्रयत्न तथा भूल सिद्धांत का प्रतिपादन थार्नडाइक 1898 ने किया था।यों तो सीखने में प्रयत्न तथा भूल की चर्चा सबसे पहले बेन तथा मार्ग की थी।परंतु प्रयोगों के आधार पर इसे वैज्ञानिक रूप देने का श्रेय थाॅर्नडाइक को ही है। इसलिए,इस सिद्धांत को थाॅर्नडाइक का सिद्धांत कहा जाता है। इस सिद्धांत के आधार पर व्यक्ति किसी विषय को प्रयत्न तथा भूल के आधार पर सीखता है। आरम्भ में भूल अधिक होती है और अंत में व्यक्ति किसी विषय को बिना भूल के ही बहुत थोड़े समय में सीख जाता है।
थार्नडाइक ने अपने विचार को प्रमाणित करने के लिए कुत्ते,बिल्ली,चूहे आदि जानवरों पर अनेक प्रयोग किये। कुछ प्रयोग मनुष्य पर भी गये। यहाँ हम केवल दो मुख्य प्रयोगों का वर्णन करना चाहेंगे।

भ्रांति बाॅक्स सम्बंधित प्रयोग-: थाॅर्नडाइक का यह प्रयोग बिल्ली पर हुआ इसमें बिल्ली ने भूख से परेशान होकर प्रयत्न तथा भूल के आधार पर बंद पिंजरे के दरवाजा खोलकर बगल में रखी मछली को खाना के रूप में प्राप्त करना सीखा।

भूल भुलाया संबंधित प्रयोग-: थाॅर्नडाइक का अगला महत्तवपूर्ण प्रयोग चूहे पर हुआ था। जिसमें भूखे चूहे ने भी बिल्ली की तरह प्रयत्न और भूल के आधार पर अपनी समस्या का समाधान करते हुए भूलभुलैया में सही जगह से खाना प्राप्त करना सीखा।

प्रयत्न और भूल द्वारा सीखने की विशेषताएं-: थाॅर्नडाइक के द्वारा किए गये उपर्युक्त प्रयोगों के विश्लेषण प्रयत्न और भूल द्वारा सीखने की निम्नांकित विशेषताएं स्पष्ट होती है--
1. प्रणोदन-: सीखने का लिए प्राणी में प्रणोदन का होना आवश्यक है। यदि प्रयोग में बिल्ली या चूहा भूखा न होता तो दोनों में से कोई भी समस्या का समाधान नहीं सीख पाता ।
2. उद्देश्य रहित क्रियाएं-: प्रयत्न तथा भूल संबंधित सिद्धांत की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके अनुसार सीखते सभ्य प्राणी व्यर्थ क्रियाएं करता है।
3. आकस्मिक सफलता -: इस सिद्धांत के अनुसार गलत क्रियाओं को करने के क्रम में संयोग से प्राणी सही क्रिया कर बैठता है और उसे इस तरह अकस्मात सफलता मिल जाती है।
4. सही प्रतिक्रिया का चुनाव-: प्रयत्न और भूल द्वारा सीखने की एक विशेषता यह है कि प्राणी सही प्रतिक्रिया को चुनकर बार-बार अभ्यास के कारण सीख लेता है।
5. गलत प्रक्रियाओं का निष्कासन-: इस सिद्धांत के अनुसार प्रारंभ में प्राणी अधिक भूल करता है परंतु अभ्यास के कारण धीरे -धीरे भूलें कम होती जाती है या बिल्कुल खत्म हो जाती है।
6. सही प्रतिक्रिया का स्थिरीकरण-: जब प्राणी गलत और सही प्रतिक्रियाओं में धीरे - धीरे अंतर समझ जाता है तो वह गलत क्रिया करना छोड देता है और सिर्फ सभी क्रिया करने लगता है। इस प्रकार सही प्रतिक्रिया का प्राणी में स्थिरीकरण हो जाता है।