स्किनर के अनुकूलन सिद्धांत की विवेचना करें।
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उत्तर-: स्किनर ने 1938 में सीखने के एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसको प्रवर्तन अनुकूलन सिद्धांत अथवा साधनात्मक अनुबंधन सिद्धांत कहते है। यह सिद्धांत पैवलव, 1904 का क्लासिकी सिद्धांत से भिन्न है। दोनों की अवधारणाओं में अंतर है।
• स्किनर के अनुसार, किसी समस्या का समाधान सीखते समय प्राणी की प्रतिक्रिया प्रबलन प्राप्त करन में साधनात्मक होती है। जबकि पैवलाव के अनुसार प्राणी की प्रतिक्रया प्रबलन प्राप्त करन में सधनात्मक नहीं होती है।
• स्किनर के अनुसार प्राणी की प्रतिक्रिया संपूर्ण - शिक्षण परिस्थिति में फैली होती है जबकि पैवलव के अनुसार ऐसा नहीं होता है ।
• स्किनर के अनुसार शिक्षण परिस्थिति में प्राणी को आंशिक प्रबलन मिलता है जबकि पर पैवलाव के अनुसार पूर्ण प्रबलन मिलता है।
स्किनर के अनुसार उत्तेजना सामान्यीकरण में प्राणी पहली शिक्षण परिस्थिति अनुसार दूसरी शिक्षण पद्धतियों में पहले सीखी गई प्रतिक्रिया को दोहराता है , जबकि पैवलाव के अनुसार प्राणी उस सीखी गई प्रतिक्रिया को उस तटस्थ उत्तेजना के समान अन्य उत्तेजनायों की उपस्थिति में दोहराता है।
थाॅर्नडाइक के प्रयत्न तथा भूल सिद्धांत की विवेचना करें। यहाँ पढ़े।
यहाँ पढ़े बुद्धि से क्या तात्पर्य है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
स्किनर ने अपनी अवधारणाओं को सत्यापित करने के लिए बिजली चूहे पर प्रयोग किया। भूखे चूहे को स्किनर बॉक्स में डाल दिया गया । जिसमें कई लीवर लगे थे, जिनमें से एक लीवर ऐसा था। जिसको दबाने पर उसे भोजन मिलता था । जब वह सही लिवर को दबाता था तो उसे भोजन मिलता था और जब गलत लीवर को दबाता था तो उसे भोजन नहीं मिलता था । देखा गया कि कई प्रयासों के बाद उसने सही लीवर दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख लिया। इसी प्रकार इसकी स्किनर ने कबूतर पर भी प्रयोग किया और अपनी अवधारणाओं को प्रमाणित किया।
इन प्रयोगों के आलोक में स्किनर ने परिवर्तन अनुकूलन की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया।
1. प्रवर्तन अनुक्रिया-: इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षण परिस्थिति में प्राणी की प्रतिक्रिया या अनुक्रिया संपूर्ण शिक्षण परिस्थिति में फैली हुई होती है ।
2. साधनात्मक अनुक्रिया-: स्किनर के अनुसार प्राणी का व्यवहार प्रबलन प्राप्त करने के लिए साधनात्मक होता है । जब वह सही प्रतिक्रिया करता है तो उसे प्रबलन मिलता है और जब गलत प्रतिक्रिया करता है तो प्रबलन प्राप्त नहीं होता है ।
3. आंशिक प्रबलन-: इस सिद्धांत के अनुसार प्राणी को प्रत्येक प्रयास में प्रबलन नहीं मिलता है। जिस प्रयास में उसका व्यवहार या प्रतिक्रिया सही होता है, उसमें प्रबलन मिलता है और जिस प्रयास में उसका व्यवहार या प्रतिक्रिया गलत होती है ,उसमें पर प्रबलन नहीं मिलता है।
4. प्रबलन -: इस सिद्धांत के अनुसार सीखने के लिए प्रबलन आवश्यक है। इसी प्रकार इस सिद्धांत की गणना प्रबलन वादी सिद्धांतों में की जाती है ।
5. प्रबलन अनुसूची-: प्रबलन अनुसूची का अर्थ यह है कि सीखते समय प्राणी को किस रूप में प्रबलन दिया जाय। एक अनुसूची वह है जिसमें प्राणी को प्रत्येक प्रतिक्रिया के बाद प्रबलन दिया जाता है । इसे पुर्न प्रबलन या सतत प्रबलन कहते हैं। दूसरी अनुसूची वह है जिसमें प्राणी को कुछ प्रतिक्रिया में प्रबलन दिया जाता है तथा कुछ प्रतिक्रियाओं में नहीं दिया जाता है, इसे आंशिक प्रबलन य असतत प्रबलन कहते हैं । स्कीनर ने इसी प्रबलन अनुसूची का उपयोग किया।
6. प्रणोदन-: इस सिद्धांत के अनुसार किसी विषय को सीखने अथवा किसी समस्या के समाधान हेतु प्राणी में प्रणोदन का होना आवश्यक है। जैसे- भूख प्रणोदन की उपस्थिति में ही चूहे ने अपनी समस्या का समाधान करना सिखा।
7. संगठित रूप देना -: स्किनर के सिद्धांत कि यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है । इसका अर्थ यह है कि शुरू में सीखते समय प्राणी का व्यवहार या प्रतिक्रिया असंगठित रहती है। जैसे--- स्कीनर बॉक्स में भूखे चूहे की प्रतिक्रिया असंगठित होती थीं, किंतु प्रबलन के कारण वह क्रमशः संगठित रूप धारण कर दी गई और अंत में उसने केवल एक सही लिवर को दबाकर पर प्रबलन प्राप्त करना सीख लिया।
कोहलर के सूझ सिद्धांत की विवेचना करें। यहाँ पढ़े।
शैक्षिक आशय एवं मूल्यांकन-: स्किनर के सिद्धांत की समीक्षा करने से इसके कई शैक्षिक आशयों का उल्लेख मिलता है । इसके शैक्षिक महत्व को निम्नलिखित रुप में देखा जा सकता है ---
1. यह सिद्धांत सीखने में प्रबलन को आवश्यकता है अतः इसका आशय शिक्षा के क्षेत्र में यह है कि बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिए उन्हें उपयुक्त प्रबलन दिया जाए ।
2. इस सिद्धांत के अनुसार सकारात्मक प्रबलन अर्थात पुरस्कार देने पर वह प्रतिक्रिया प्रबलित होती है और प्राणियों से सीखता है और नकारात्मक प्रबलन देने पर वह प्रतिक्रिया कमजोर होती है और प्राणी उसे नहीं सीखता है। अतः इसका शैक्षिक आशय कहा है कि बालकों को उनके वांछित व्यवहारों के लिए पुरस्कार तथा अवांछित व्यवहार करने पर दंड देना चाहिए।
3. इस सिद्धांत का एक सच यह भी है कि कक्षा में कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि शुरू में छात्रों को प्रत्येक सही प्रतिक्रिया पर धनात्मक प्रबलन मिले और बाद में कभी कभी सही प्रतिक्रिया पर यह प्रबलन नहीं मिले। दूसरे शब्दों में, आरम्भ में सतत प्रबलन की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा इसके बाद असतत प्रबलन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
4. इस सिद्धांत का एक आशय यह भी है कि शिक्षक बच्चों को नियंत्रित किन्तु स्वाभाविक रूप से सीखने का सीखने का अवसर दे। इनसे उनमें सीखने की योग्यता स्वाभाविक रूप से विकसित होगी।
स्किनर के सिद्धांत का एक शैक्षिक महत्त्व यह भी है कि इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि प्राणी को संपूर्ण शिक्षण परिस्थिति में प्रवर्तन अनुक्रिया का अवसर दिया जाना चाहिए । इसका अर्थ यह है कि शिक्षकों को चाहिए कि वे परीक्षार्थियों को प्रवर्तन तरीके से व्यवहार करने का मौका दें ताकि उनकी शिक्षा समग्र रूप से हो सके।
सीमाएँ-: स्किनर के सिद्धांत के कई शैक्षिक महत्त्व का उल्लेख किया जा चुका है।लेकिन, इसमें कुछ त्रुटियाँ भी हैं------
1. स्किनर ने अपने सिद्धांत में दंड के महत्त्व को घटा दिया है लेकिन आज भी अधिकांश मनोवैमानते है कि बच्चों के अवांछित व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए दण्ड एक आवश्यक उपकरण है।
2. इस सिद्धांत की एक आवश्यक त्रुटि यह भी है कि इसमें उत्तेजना-प्रतिक्रिया सम्बंध पर बाह्य रूप से बल दिया गया है। लेकिन बालकों की समुचित शिक्षा के लिए यह आवश्यक है उनकी आंतरिक संरचना को भी समझने का प्रयास करें।
3. शिक्षा के दृष्टिकोण से इस सिद्धांत की यह अवधारणा भी पूर्णतः सही नहीं है कि केवल अभ्यास करने से ही उत्तेजन- अभिक्रिया बंधन का निर्माण होता है। वास्तव में किसी विषय को सीखने के लिए सूझ भी आवश्यक है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षण की अन्य सिद्धांतो की तरह स्किनर का सिद्धांत भी बालकों की शिक्षा के लिए केवल आंशिक रूप में ही सफल है।
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उत्तर-: स्किनर ने 1938 में सीखने के एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसको प्रवर्तन अनुकूलन सिद्धांत अथवा साधनात्मक अनुबंधन सिद्धांत कहते है। यह सिद्धांत पैवलव, 1904 का क्लासिकी सिद्धांत से भिन्न है। दोनों की अवधारणाओं में अंतर है।
• स्किनर के अनुसार, किसी समस्या का समाधान सीखते समय प्राणी की प्रतिक्रिया प्रबलन प्राप्त करन में साधनात्मक होती है। जबकि पैवलाव के अनुसार प्राणी की प्रतिक्रया प्रबलन प्राप्त करन में सधनात्मक नहीं होती है।
• स्किनर के अनुसार प्राणी की प्रतिक्रिया संपूर्ण - शिक्षण परिस्थिति में फैली होती है जबकि पैवलव के अनुसार ऐसा नहीं होता है ।
• स्किनर के अनुसार शिक्षण परिस्थिति में प्राणी को आंशिक प्रबलन मिलता है जबकि पर पैवलाव के अनुसार पूर्ण प्रबलन मिलता है।
स्किनर के अनुसार उत्तेजना सामान्यीकरण में प्राणी पहली शिक्षण परिस्थिति अनुसार दूसरी शिक्षण पद्धतियों में पहले सीखी गई प्रतिक्रिया को दोहराता है , जबकि पैवलाव के अनुसार प्राणी उस सीखी गई प्रतिक्रिया को उस तटस्थ उत्तेजना के समान अन्य उत्तेजनायों की उपस्थिति में दोहराता है।
थाॅर्नडाइक के प्रयत्न तथा भूल सिद्धांत की विवेचना करें। यहाँ पढ़े।
यहाँ पढ़े बुद्धि से क्या तात्पर्य है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
स्किनर ने अपनी अवधारणाओं को सत्यापित करने के लिए बिजली चूहे पर प्रयोग किया। भूखे चूहे को स्किनर बॉक्स में डाल दिया गया । जिसमें कई लीवर लगे थे, जिनमें से एक लीवर ऐसा था। जिसको दबाने पर उसे भोजन मिलता था । जब वह सही लिवर को दबाता था तो उसे भोजन मिलता था और जब गलत लीवर को दबाता था तो उसे भोजन नहीं मिलता था । देखा गया कि कई प्रयासों के बाद उसने सही लीवर दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख लिया। इसी प्रकार इसकी स्किनर ने कबूतर पर भी प्रयोग किया और अपनी अवधारणाओं को प्रमाणित किया।
इन प्रयोगों के आलोक में स्किनर ने परिवर्तन अनुकूलन की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया।
1. प्रवर्तन अनुक्रिया-: इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षण परिस्थिति में प्राणी की प्रतिक्रिया या अनुक्रिया संपूर्ण शिक्षण परिस्थिति में फैली हुई होती है ।
2. साधनात्मक अनुक्रिया-: स्किनर के अनुसार प्राणी का व्यवहार प्रबलन प्राप्त करने के लिए साधनात्मक होता है । जब वह सही प्रतिक्रिया करता है तो उसे प्रबलन मिलता है और जब गलत प्रतिक्रिया करता है तो प्रबलन प्राप्त नहीं होता है ।
3. आंशिक प्रबलन-: इस सिद्धांत के अनुसार प्राणी को प्रत्येक प्रयास में प्रबलन नहीं मिलता है। जिस प्रयास में उसका व्यवहार या प्रतिक्रिया सही होता है, उसमें प्रबलन मिलता है और जिस प्रयास में उसका व्यवहार या प्रतिक्रिया गलत होती है ,उसमें पर प्रबलन नहीं मिलता है।
4. प्रबलन -: इस सिद्धांत के अनुसार सीखने के लिए प्रबलन आवश्यक है। इसी प्रकार इस सिद्धांत की गणना प्रबलन वादी सिद्धांतों में की जाती है ।
5. प्रबलन अनुसूची-: प्रबलन अनुसूची का अर्थ यह है कि सीखते समय प्राणी को किस रूप में प्रबलन दिया जाय। एक अनुसूची वह है जिसमें प्राणी को प्रत्येक प्रतिक्रिया के बाद प्रबलन दिया जाता है । इसे पुर्न प्रबलन या सतत प्रबलन कहते हैं। दूसरी अनुसूची वह है जिसमें प्राणी को कुछ प्रतिक्रिया में प्रबलन दिया जाता है तथा कुछ प्रतिक्रियाओं में नहीं दिया जाता है, इसे आंशिक प्रबलन य असतत प्रबलन कहते हैं । स्कीनर ने इसी प्रबलन अनुसूची का उपयोग किया।
6. प्रणोदन-: इस सिद्धांत के अनुसार किसी विषय को सीखने अथवा किसी समस्या के समाधान हेतु प्राणी में प्रणोदन का होना आवश्यक है। जैसे- भूख प्रणोदन की उपस्थिति में ही चूहे ने अपनी समस्या का समाधान करना सिखा।
7. संगठित रूप देना -: स्किनर के सिद्धांत कि यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है । इसका अर्थ यह है कि शुरू में सीखते समय प्राणी का व्यवहार या प्रतिक्रिया असंगठित रहती है। जैसे--- स्कीनर बॉक्स में भूखे चूहे की प्रतिक्रिया असंगठित होती थीं, किंतु प्रबलन के कारण वह क्रमशः संगठित रूप धारण कर दी गई और अंत में उसने केवल एक सही लिवर को दबाकर पर प्रबलन प्राप्त करना सीख लिया।
कोहलर के सूझ सिद्धांत की विवेचना करें। यहाँ पढ़े।
शैक्षिक आशय एवं मूल्यांकन-: स्किनर के सिद्धांत की समीक्षा करने से इसके कई शैक्षिक आशयों का उल्लेख मिलता है । इसके शैक्षिक महत्व को निम्नलिखित रुप में देखा जा सकता है ---
1. यह सिद्धांत सीखने में प्रबलन को आवश्यकता है अतः इसका आशय शिक्षा के क्षेत्र में यह है कि बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिए उन्हें उपयुक्त प्रबलन दिया जाए ।
2. इस सिद्धांत के अनुसार सकारात्मक प्रबलन अर्थात पुरस्कार देने पर वह प्रतिक्रिया प्रबलित होती है और प्राणियों से सीखता है और नकारात्मक प्रबलन देने पर वह प्रतिक्रिया कमजोर होती है और प्राणी उसे नहीं सीखता है। अतः इसका शैक्षिक आशय कहा है कि बालकों को उनके वांछित व्यवहारों के लिए पुरस्कार तथा अवांछित व्यवहार करने पर दंड देना चाहिए।
3. इस सिद्धांत का एक सच यह भी है कि कक्षा में कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि शुरू में छात्रों को प्रत्येक सही प्रतिक्रिया पर धनात्मक प्रबलन मिले और बाद में कभी कभी सही प्रतिक्रिया पर यह प्रबलन नहीं मिले। दूसरे शब्दों में, आरम्भ में सतत प्रबलन की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा इसके बाद असतत प्रबलन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
4. इस सिद्धांत का एक आशय यह भी है कि शिक्षक बच्चों को नियंत्रित किन्तु स्वाभाविक रूप से सीखने का सीखने का अवसर दे। इनसे उनमें सीखने की योग्यता स्वाभाविक रूप से विकसित होगी।
स्किनर के सिद्धांत का एक शैक्षिक महत्त्व यह भी है कि इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि प्राणी को संपूर्ण शिक्षण परिस्थिति में प्रवर्तन अनुक्रिया का अवसर दिया जाना चाहिए । इसका अर्थ यह है कि शिक्षकों को चाहिए कि वे परीक्षार्थियों को प्रवर्तन तरीके से व्यवहार करने का मौका दें ताकि उनकी शिक्षा समग्र रूप से हो सके।
सीमाएँ-: स्किनर के सिद्धांत के कई शैक्षिक महत्त्व का उल्लेख किया जा चुका है।लेकिन, इसमें कुछ त्रुटियाँ भी हैं------
1. स्किनर ने अपने सिद्धांत में दंड के महत्त्व को घटा दिया है लेकिन आज भी अधिकांश मनोवैमानते है कि बच्चों के अवांछित व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए दण्ड एक आवश्यक उपकरण है।
2. इस सिद्धांत की एक आवश्यक त्रुटि यह भी है कि इसमें उत्तेजना-प्रतिक्रिया सम्बंध पर बाह्य रूप से बल दिया गया है। लेकिन बालकों की समुचित शिक्षा के लिए यह आवश्यक है उनकी आंतरिक संरचना को भी समझने का प्रयास करें।
3. शिक्षा के दृष्टिकोण से इस सिद्धांत की यह अवधारणा भी पूर्णतः सही नहीं है कि केवल अभ्यास करने से ही उत्तेजन- अभिक्रिया बंधन का निर्माण होता है। वास्तव में किसी विषय को सीखने के लिए सूझ भी आवश्यक है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षण की अन्य सिद्धांतो की तरह स्किनर का सिद्धांत भी बालकों की शिक्षा के लिए केवल आंशिक रूप में ही सफल है।