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25 नवम्बर का इतिहास

♓🅰♉🚩🅾♏ *भारतीय एवं विश्व इतिहास में 25 नवंबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ।* ☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆ 1667 - रूस के उत्तरी कॉकसस क्षेत्र के सेमाखा में ...

Thursday, 10 September 2020

चेरो से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य।

 चेरो

----चेराओं का संबंध द्रविड़ जनजाति से है।
---- इनकी अधिकांश आबादी पलामू में केन्द्रित थी।
--- चेराओं के नाक कान छेदने का कार्य मलहोरीन करती थी।
--- कान में दो दिन छेद करवाते थे पर नाक में दाहिने ओर एक छेद करवाना पसंद था। गोदना गोदवातीं थी, जो दस वर्ष तक करवा लिया जाता था।
----मकान के दक्षिण- पश्चिम कोने में चुल्हा होता था।
--- चेरो समाज पितृसत्तात्मक समाज था।
---- विधवा अपने देवर से शादी कर सकती थी।
---- विधवा को भरण-पोषण के लिए पारिवारिक सम्पत्ति का बराबर का हिस्सा दिया जाता था।
--- बड़े चेरो बबुआन कहे जाते थे।
---- चेरो महिला न तो शव यात्रा में शामिल हो सकती थी और न अक्सर तीर्थाटन के लिए निकल सकती थी। गांव के सामूहिक धार्मिक अनुष्ठानों में भी उसकी भागीदारी नहीं के बराबर थी। पंचायत में भी इनका कोई स्थान न था।
---- सउरीघर का सम्बंध प्रसव कक्ष से था।
----- चेराओं में बाल विवाह की प्रथा नहीं थी पर सामान्यतः 12 वर्ष की आयु तक बालक-बालिकाओं का विवाह हो जाता था।
--- लड़कों को 100-1000 रूपये तक तिलक देने की प्रथा थी पर जिन लड़कों को तिलक मिलने की संभावना नहीं रहती थी वे स्वयं कन्या को वधू मूल्य देते थे जिसे दस्तूरी कहते थे।
----- विवाह से पूर्व कन्या अवलोकन की प्रथा चेराओं में नहीं थी।
----- इनमें सगोत्र विवाह वर्जित था।
------ विवाह के तीन तरीके थे। डोला, घरांऊ(कन्या पक्ष के गरीब होने पर) और चढ़ाऊं (कन्या पक्ष के सम्पन्न होने पर)।
----- प्रत्येक गांव में एक बैगा(वंशानुगत) तथा कुछ में डिहवार भी होता था। बैगा देवी देवताओं की तथा डिहवार कुपित आत्माओं को पूजा करते थे।
----- भैयारी पंचायत के पदाधिकारी थे-- महतो या सभापति, छरीदार और पंच।ये पद वंशानुगत थे पर बाद में चुनाव से चयन किए जाने लगे। इनका काम पारंपरिक नियमों के उल्लंघन को रोकना, ठीक समय पर देवी- देवताओं की पूजा कराना।
----- कन्या यदि विवाह के वक्त विदा नहीं होता था तो उसका गवना होता था, बाद में पहली बार ससुराल जाते वक्त दोंगा होने का प्रथा था।
------ परित्यक्ता का पुनर्विवाह सगाई कहा जाता था।
----- चेरो हिन्दू पड़ोसियों की देखा देखी छठ व्रत में सूर्य की पूजा करते थे। रामनवमी भी मनाते थे।
---- बैशाख में सरहूल पूजा होती थी। इस मौके पर गमहेल स्थान में बैगा-खस्सी-मुर्गा तथा तपावन चढ़ाता था। आषाढ़ मास में हरियारी पूजा होती थी। श्रावण में  सावनी पूजा तथा अच्छी वर्षा के लिए दुआर पार की पूजा होती थी। भाद्रपद मास में कर्म पूजा, अनन्त पूजा का प्रचलन था। जन्माष्टमी,जितिया,तीज व्रत,कार्तिक मास में सोहराई पूजा,पौष मास में तिलसंक्रांत पूजा, फाल्गुन में फगुआ आदि उत्सव मनाये जाते थे।

खरवारों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य।

 खरवार

---)) खरवार की अधिकतर संख्या पलामू, रांची तथा हजारीबाग में थी।

---)) खरवार परंपरा के अनुसार वे खेरीझार से आते थे , इसलिए खरवार कहलाये।

-)) खरवारों का प्रमुख पेशा कृषि धर्म था।

-))) इनमें बाल विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है।वधू मूल्य देने की प्रथा थी।

-)) खरवारों की अपनी पंचायत होती थी।जिसके सदस्य गांव के ही वरिष्ठ पुरुष होते थे।

-)) कई गांव मिलकर चट बनता था जिसका प्रमुख प्रधान कहा जाता था। इसका पद वंशानुगत होता था।

-))) खरवारों में घुमकुरिया जैसी कोई संस्था नहीं थी।

-)) कोई स्त्री निःसंतान थी तो उसकी बहन का विवाह जीजा के साथ हो सकता था। ऐसे विवाह को 'रिजनिया' कहा जाता था।

-))) पलामू तथा रांची में खरवार ग्राम पंचायत का प्रमुख मुखिया कहा जाता था, किंतु शाहाबाद में उसे बैगा ही कहते थे।

-))) बैगा ही प्रत्येक गांव में फसल बोने अथवा काटने का शुभारंभ करता था।

-)) खरवार मुखिया गांवों से हूं राजस्व एकत्रित कर जमींदार को देता था।

--)) खरवार पंचायत एक सर्वमान्य संस्था थी और 1947 ई तक खरवारों के अधिकांश पारस्परिक झगड़े पंचायत स्तर पर ही निपटा लिए जाते थे।

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Tuesday, 8 September 2020

टाना भगत आंदोलन



              टाना भगत आंदोलन(1914)
-) टाना भगत आंदोलन के जनक जतरा भगत का जन्म 1888 ई में गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के अंतर्गत चिंगरी नावाटोली में हुआ था।
-) पिता का नाम कोहरा भगत और माता का नाम लिबरी भगत था। पत्नी बुधनी भगत थी।
-) प्रत्येक वर्ष गांधी जयंती के दिन चिगरी नावाटोला में इनकी जयंती मनाई जाती है।
-) इनको आत्म बोध की प्राप्ति 1914 ई में गुरु ग्राम हेसराग के श्री तुरीया भगत से तंत्र -मंत्र की विद्या सीखने के क्रम में हुआ।
-)टाना भगत आंदोलन की शुरुआत अप्रिल 1914 ई में हुई।
-) टाना शब्द का अर्थ है टानना या खींचना।
-) टाना भगतों की अधिकांश आबादी बिशनपुरा,घाघरा, गुमला,रायडीह, चैनपुर,पालकोट,सिसई, लापुंग,कुडूं तथा मांडर में केन्द्रित है। इनकी कुल संख्या प्रायःदस हजार है जो लगभग 150 परिवारों में विभक्त है।
-) टाना भगत मांस खा सकते थे मांसभक्षी भगत जुलाहा भगत कहे गये ये मांडर क्षेत्र में पाते जाते है। जिन लोगों ने शिबू भगत का अनुखरण नहीं किया वे अरूवा भगत कहलाये क्योंकि वे केवल अरवा चावल ही खाते थे।
-) घाघरा क्षेत्र में बेलगाडा़ निवासी बलराम भगत ने भगत सम्प्रदाय की बागडोर संभाली।
-) बिशनपुर थाना के उरावां ग्राम के भीखू भगत ने बिष्णु भगत सम्प्रदाय को जन्म दिया।
-) 1961 में जतरा भगत को जेल हुई और इस शर्त पर छोड़ा गया कि वह अपने सिद्धांतों का प्रचार नहीं करेगा और शांति बनाते रखेगा।पर जेल में मिली प्रताड़ना की वजह से दो मास के भीतर उसकी मौत हो गई।
-) आंदोलन नहीं रूका और 1916 के अंत तक रांची जिला के दक्षिण पश्चिम भागों से मध्य भाग होते हुए विशेषतः बेड़ी,कुडुं,मांडर, थानों में तथा उत्तर में पलामू जिला तक फैला।

-)भगतों ने राजा के समक्ष चार प्रस्ताव रखा ---


1----उन्हें स्वशासन प्रदान किया जाय।
2------राजा का पद समाप्त किया जाय।
3------समानता स्थापित किया जाय।
4-------भूमि कर समाप्त किया जाय।
-) महात्मा गांधी ने 1921 ई में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारंभ किया तो कुडुं थाना के सिद्धु भगत के नेतृत्व में टाना भगत पहली बार स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गये।
-) टाना भगतों में केवल उरांव ही नहीं है उनमें मुंडा और खड़िया भी शामिल हैं।फिर भी सबसे ज्यादा संख्य में उरांव ही हैं।
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बिरसा आंदोलन

 बिरसा आंदोलन



-)बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 ई को हुआ था।
-) उन दिनों तमाड़ थाना क्षेत्र के उलिहातू में हुआ था।
-) पिता सुगना मुंडा थे और माता कदमी मुंडा थी। इनके बड़े भाई का नाम कोंता मुंडा था।
-) इनका मामा घर अयुबहातू था और नाना जी डिबर मुंडा थे। मौसी जोनी मुंडा अपने साथ ससुराल खटांगा ले गयी।
-) गौडबेडा के आनंद पांडा के सर्म्पक में आया। जहां उस पर बैष्णव धर्म का प्रभाव पड़ा।
-) सबसे पहले बिरसा ईसाई धर्म प्रचारक के सम्पर्क आया।
-) कुंदी बरटोली में बिरसा की भेंट एक जर्मन पादरी से हो गई ,जो उसे बारजो ले गया, जहां पर उसने निम्न प्राथमिक परीक्षा में उत्तीर्ण का प्राप्त की।
-) चालकद बिरसा के अनुयायियों का तीर्थ स्थल है।
-) बिरसा ने चाईबासा से उच्च प्राथमिक स्तर की परीक्षा 1890 ईसवी में पास की।
-) सिंहभूम के संकराग्राम की एक युवती से बिरसा का विवाह हुआ पर बाद में उन्होंने यह विवाह का रिश्ता तोड़ दिया।
-) बिरसा ने लोगों से सिंगबोंगा की उपासना करने का आग्रह किया।
-) बिरसा के वारंट की तामीली का काम पुलिस डिप्टी सुपरिंटेंडेंट जी०आर ०के० मेयर्स को सौंपा गया था।
-) बिरसा आंदोलन का द्वितीय चरण  तब शुरू हुआ जब 1897 ईस्वी के उत्तरार्ध में बिरसा तथा उसके 15 अनुयायियों को हजारीबाग जेल से महारानी विक्टोरिया के शासन के हीरक जयंती के अवसर पर सजा की मियाद पूरी होने के कुछ दिन पहले छोड़ा गया था।
-) 1898-99 ईसवी में संपूर्ण मुंडा प्रदेश में अकाल एवं महामारी का प्रकोप हो गया , जिसका बिरसा ने फायदा उठाते हुए लोगों को सहयोग करते हुए एकजुट किया और अपने विद्रोह की तैयारी करते हुए लोगों को संगठित किया।
-) बिरसा के सेना का मुख्यालय खूंटी में था।
-) 28 जनवरी 1900 को दो मुंडा सरदारों डोंका मुंडा और मांझिया मुंडा ने 32 विद्रोहियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
-) बिरसा मुंडा को पकड़ने के लिए ₹500 के इनाम की घोषणा की गई थी।
-) बनगांव के जग मोहन सिंह के आदमियों वीर सिंह महली आदि ने इनाम के लालच में बिरसा को 3 मार्च 1980 को पकड़ा दिया।
-) मुकदमा के दौरान ही जेल में बंद बिरसा का 9 जून 1980 को निधन हो गया।
-) 1902में गुमला तथा 1903 में में खूंटी अनुमंडल खोले गए।
-) बंगाल काश्तकारी कानून की जगह 11 नवंबर 1908 ईस्वी को छोटानागपुर काश्तकारी कानून लागू किया गया।
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संथाल-हुल विद्रोह(1855-56)

संथाल-हुल विद्रोह 1855-56

-/1836 ईसवी तक दामिन ए कोह में संथाल गांवों की संख्या 427 तक हो गई और इन्होंने ने ही 1855 ईसवी की हुल में भाग लिया।
-/1855 ईसवी के आरंभ में 6-7 हजार संथाल विरभूम, बांकुड़ा छोटानागपुर-खास और हजारीबाग से एकत्रित हुए। भगनाडीह के चुन्नू मांझी के चार बेटों सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव ने संतालों को नेतृत्व प्रदान किया।
-/1855 ई के एक्ट 37 के अनुसार संथाल परगना जिला की स्थापना हुई।
-/ जुलाई 1855 ई में राजमहल की पहाड़ियों के संतालों का विद्रोह शुरू हुआ। 19 फरवरी 1856 में हजारीबाग के संतालों ने विद्रोह किया।
-/संथाल विद्रोह का वास्तविक विद्रोह अप्रिल 1856 ई में शुरू हुआ।
-/ अर्जून मांझी हजारीबाग के संतालों का महत्वपूर्ण नेता था।
-/ इस विद्रोह का दौर मार्च 1856 के प्रथम सप्ताह में शुरू हुआ जब संतालों ने खडगडीहा परगना के जगन्नाथडीह तथा चक्रडीह पर हमला किया और महाजनों तथा दुकानदारों को लूट लिया।
-/संभालो ने खड़गडीहा परगना में गुआ से 10- 12 किलोमीटर दक्षिण- पश्चिम में अखलापुर बाजार को 20 मार्च 1856 ईसवी में कुलियों, लक्ष्मी ठकुराइन तथा धर्मा के नेतृत्व में लूट लिया।
-/27 अप्रैल 1856 ई को विद्रोहियों के बीच से ही आए हुए 2 संथालो ने खड़गड़ीहा स्थित डिप्टी मजिस्ट्रेट से मुलाकात कर विद्रोहियों के नये नेता सेरजडीह का लुबई मांझी तथा गोवा, दोरूंदा,किस्को और बैरिया के विषय में खुलासा कर दिया। अतः 2 मई 1856 ई को कमिश्नर ने प्रिंसिपल असिस्टेंट के द्वार बंदी बनावा लिया।
-/संथाल विद्रोह और अंग्रेज अधिकारियों का पहला सीधा संघर्ष 29 अप्रैल 1856 ईस्वी को चतरोचट्टी में हुआ।
-/100रूपये के लोभ में जासूस टेक नारायण सिंह से सूचना पाकर 28 मई 1856 को अलेक्जेंडर ने भैरव मांझी को उसके गांव से गिरफ्तार कर लिया।जिसके बाद हजारीबाग में संथाल विद्रोह कमजोर पड़ गया।
-/₹100 के इनाम के लोभ में प्रताप सिंह ने 2 जून 1856 को संभाल नेता बुका मांझी को पकड़वा दिया।