*Q . गामक विकास के अर्थ वा इसकी विशेषताएँ।*
उत्तर-: गामक विकास से तात्पर्य बालकों में उनकी मांसपेशियों तथा तंत्रिकाओं की समन्वित कार्य द्वारा अपनी शारीरिक क्रियाओं पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने से होता है। जन्म लेने के बाद बच्चा हाथ, पैर हिलाने-डुलाने तथा फैलाने-सिकोड़ने की क्रिया करने लगता है और धीरे-धीरे गर्दन, आंख की पुतलियाँ; धड़ तथा अन्य अंग चलाने लगता है।
यही अंगों की संचालन के क्रिया और उसमें होने वाले प्रगतिशील एवं अपेक्षित परिवर्तन को गामक विकास कहते हैं । *हरलॉक* के अनुसार-- "गामक विकास से अभिप्राय है-- मांसपेशियों की उन गतिविधियों का नियंत्रण जो जन्म के समय के पश्चात निरर्थक एवं अनिश्चित होती है।" गामक विकास में शरीर के अंगों, मांसपेशियों तथा स्नायुमंडल की शक्तियां एवं क्रियाशीलता अथवा क्षमता की समन्वित व्याख्या की जाती है। *क्रो एवं क्रो* ने गामक विकास के संबंध में विचार व्यक्त करते हुए कहा है-- " स्नायुमंडल तथा मांसपेशियों की क्रियाओं के समीकरण द्वारा जो शारीरिक क्रियाकलाप संभव हो सकता है, उन्हें गामक क्रिया कहते हैं।" गामक क्रियाओं में गतिशीलता एवं उसका ठीक ठाक होना भी सम्मिलित है। *गैरिसन* के अनुसार--- " शक्ति, अंग- सामंजस्य तथा गति का और हाथ पैर एवं शरीर की मांसपेशियों के ठीक-ठाक उपयोग का विकास बालक की संपूर्ण विकास की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।" गामक विकास का महत्व बाल्यावस्था तक ही सीमित नहीं है, बल्कि प्रौढ़ अथवा वयस्क अवस्था से लेकर मृत्युपर्यंत गामक विकास का महत्व है। जीवन की संपूर्ण अवस्थाओं में गामक दक्षता की आवश्यकता रहती है।
*```गामक विकास की विशेषताएं*```
*थाॅम्पसन* ने गामक विकास की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है----
1)-: विशिष्ट प्रवृतियाँ--: आरंभ में समूचा शरीर गति करता है, लेकिन धीरे-धीरे विशेष पेशी या पेशी समूह ही सही समय पर गति करता है । दूसरे शब्दों में , बच्चे की पेशी प्रतिक्रिया कम से कम अनुकूलित होती जाती है ।
2-: बड़ी से छोटी पेशी की ओर----: बढ़ती आयु के बालक का सबसे पहले समन्वित नियंत्रण बड़े पेशी समूह पर स्थापित होता है।
3-: सिर से नीचे की ओर ---: गामक विकास में विकास की दिशा एक नियम है। सबसे पहले सिर के भाग में नियंत्रण दिखाई पड़ता है तथा क्रमशः धड़ में नीचे की और अवनत होता हुआ पैरों तक पहुंचता है । उदाहरणार्थ, जन्म के 1 सप्ताह बाद बच्चा अपना सिर उठाने लगता है लेकिन 1 वर्ष पूरा होने के बाद ही अपने पैरों पर खड़ा हो पाता है। गामक विकास से पहले उन ढाँचों में होता है जो प्रमुख धुरी के अति निकट है और इसके बाद ही दुरस्त ढाँचों में होता है । उदाहरणार्थ, पेशी नियंत्रण सबसे पहले भुजाओं में और इसके बाद अंगुलियों में होता है।
4-: द्विपक्षीय से एकपक्षीय प्रवृत्ति---: चाल, शक्ति, समन्वय के निबंधनों में बच्चा परिपक्व बनता है तथा वैयक्तिक रूचि क्रमशः गामक कौशल में एकपक्षी कार्य करने का मार्ग बनता है। हाथ को प्राथमिकता देने की परिवर्ती से इसको समझा जा सकता है। आयु बढ़ने के साथ बच्चा अपने एक हाथ का लगातार प्रयोग करता है।
5-: पेशियों के अधिकतम कार्य की न्यूनतम कार्य की ओर बढ़ने की परिवर्ती--: परिपक्व होने के साथ ही बच्चा पेशियों से अधिक कार्य करने लगता है। बड़ी मात्रा में पेशी का निष्प्रयोजन कार्य प्रारंभ होता है और बाद में वह पेशी शक्ति को अधिक से अधिक खर्च करने लगता है। जब बच्चा चलना सीखता है तो पेशियों की गति बहुत तीव्र होने लगती है । नए गामक कौशल में प्रवीण बनने का प्रयास करते समय बच्चों में आतुरता और जल्दबाजी प्रत्यक्षता देखी जा सकती है।
6-: सामान्य क्रमिकता-: बच्चों के गामक विकास में एक क्रमिक व्यवस्था दिखाई पड़ती है। सबसे पहले आंखों का संतुलन बनता है। इसके पश्चात सिर भाग्य की मुद्रा में नियंत्रण और बाद में क्रमशः धड़ भाग में नियंत्रण स्थापित होता है। इसके पश्चात टांगो की गति में अंतिम नियंत्रण स्थापित होने पर बच्चा सरकना, कोहनी के बल चलना, खड़ा होना और चलना सीखता है। इस कथन की पुष्टि हरलॉक में यह कहकर कि है कि शिरोभाग में गामक विकास सबसे पहले होता है। इसके पश्चात भुजाओं और हाथों तथा अंत में टांगो की गामक शक्ति का विकास होता है।
कई पहलुओं पर गामक विकास सुस्थिर क्रम को अपनाता है किंतु कुछ व्यक्तिगत विभिन्नताएं इस बात का साक्ष्य हैं कि कुछ बच्चे इसके श्रेणीक्रम में कुछ सोपानों को छलांग मारकर पार कर जाते हैं और कुछ अन्य पेशियों के गति करने के अवसर कम मिलने के कारण अपने हाथों पर नियंत्रण बहुत समय बाद प्राप्त कर पाते हैं। कुछ ऐसे ही होते हैं जो प्रेरित और उत्साहित किए जाने पर समय से भी पहले पेशी नियंत्रण की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। स्वास्थ्य, आहार आदि कुछ ऐसे कारक है जो बालकों के गामक विकास में अंतर कर देते हैं।